ऊर्ध्वाम्नाय तंत्र में शिव-पार्वती संवाद के अंतर्गत यह स्तोत्र स्वयं भगवान् शिव के मुख से प्रकट हुआ है, शिव जी श्रीराधाजी से प्रार्थना करते हैं कि हे राधा रानी मुझ पर अपनी कटाक्ष (तिरछी नजरें) कब डालोगी?
ब्रजभूमि में सर्व लोकप्रिय इस स्तोत्र का पाठ राधाजी की कृपा और मन की सौम्य शान्ति प्राप्त करने के लिए किया जाता है.
-अथ श्री राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्रम्-
मुनीन्द्रवृन्दवन्दिते त्रिलोकशोकहारिणि
प्रसन्नवक्त्र-पण्कजे निकुञ्ज-भूविलासिनि।
व्रजेन्द्रभानु–नन्दिनि व्रजेन्द्र–सूनुसंगते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम्।१।
अशोकवृक्ष–वल्लरी वितान–मण्डपस्थिते
प्रवालबाल–पल्लव प्रभारुणांघ्रि–कोमले ।
वराभयस्फुरत्करे प्रभूतसम्पदालये
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम्।२।
अनङ्ग-रण्ग मङ्गल-प्रसङ्ग-भङ्गुर-भ्रुवां
सविभ्रमं ससम्भ्रमं दृगन्त–बाणपातनैः ।
निरन्तरं वशीकृतप्रतीतनन्दनन्दने
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्षभाजनम्।३।
तडित्–सुवर्ण चम्पकप्रदीप्त–गौरविग्रहे
मुख–प्रभापरास्त–कोटि–शारदेन्दुमण्डले ।
विचित्रचित्र सञ्चरच्चकोर-शाव-लोचने
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम्।४।
मदोन्मदाति–यौवने प्रमोदमानमण्डिते
प्रियानुराग–रञ्जिते कला–विलासपण्डिते ।
अनन्यधन्य–कुञ्जराज्य–कामकेलि–कोविदे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम्।५।
अशेष–हावभावधीरहीरहार–भूषिते
प्रभूतशातकुम्भ–कुम्भकुम्भि–कुम्भसुस्तनि ।
प्रशस्तमन्द–हास्यचूर्ण पूर्णसौख्यसागरे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम्।६।
मृणाल-वाल-वल्लरी तरङ्ग-रङ्ग-दोर्लते
लताग्र–लास्य–लोल–नील–लोचनावलोकने ।
ललल्लुलन्मिलन्मनोज्ञ–मुग्धमोहिनाश्रिते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम्।७।
सुवर्णमलिकाञ्चित –त्रिरेख–कम्बु–कण्ठगे
त्रिसूत्र–मङ्गली-गुणत्रिरत्न-दीप्तिदीधिते ।
सलोलनीलकुन्तल–प्रसूनगुच्छ गुम्फिते
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम्।८।
नितम्बबिम्ब–लम्बमान–पुष्पमेखलागुणे
प्रशस्तरत्न-किङ्किणी-कलाप-मध्य मञ्जुले ।
करीन्द्र–शुण्डदण्डिका–वरोहसौभगोरुके
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम्।९।
अनेक–मन्त्रनाद–मञ्जु नूपुरारव–स्खलत्
समाज–राजहंस–वंश–निक्वणाति–गौरवे ।
विलोलहेमवल्लरी–विडम्बिचारु–चङ्क्रमे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम्।१०।
अनन्तकोटि–विष्णुलोक–नम्र–पद्मजार्चिते
हिमाद्रिजा–पुलोमजा–विरिञ्चजा-वरप्रदे ।
अपार–सिद्धिऋद्धि–दिग्ध–सत्पदाङ्गुली-नखे
कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष–भाजनम्।११।
मखेश्वरि क्रियेश्वरि स्वधेश्वरि सुरेश्वरि
त्रिवेद–भारतीश्वरि प्रमाणशासनेश्वरि ।
रमेश्वरि क्षमेश्वरि प्रमोद–काननेश्वरि
व्रजेश्वरि व्रजाधिपे श्रीराधिके नमोऽस्तु ते।१२।
इती ममद्भुतं-स्तवं निशम्य भानुनन्दिनी
करोतु सन्ततं जनं कृपाकटाक्ष-भाजनम् ।
भवेत्तदैव सञ्चित त्रिरूप–कर्म नाशनं।
लभेत्तदा व्रजेन्द्रसूनु–मण्डलप्रवेशनम्।१३।
राकायां च सिताष्टम्यां दशम्यां च विशुद्धधीः ।
एकादश्यां त्रयोदश्यां यः पठेत्साधकः सुधीः ।१४।
यं यं कामयते कामं तं तमाप्नोति साधकः ।
राधाकृपाकटाक्षेण भक्तिःस्यात् प्रेमलक्षणा।१५।
ऊरुदघ्ने नाभिदघ्ने हृद्दघ्ने कण्ठदघ्नके ।
राधाकुण्डजले स्थिता यः पठेत् साधकः शतम् ।१६।
तस्य सर्वार्थ सिद्धिः स्याद् वाक्सामर्थ्यं तथा लभेत् ।
ऐश्वर्यं च लभेत् साक्षाद्दृशा पश्यति राधिकाम् ।१७।
तेन स तत्क्षणादेव तुष्टा दत्ते महावरम् ।
येन पश्यति नेत्राभ्यां तत् प्रियं श्यामसुन्दरम् ।१८।
नित्यलीलाप्रवेशं च ददाति श्री-व्रजाधिपः ।
अतः परतरं प्रार्थ्यं वैष्णवस्य न विद्यते।१९।
।इति श्रीमदूर्ध्वाम्नाये श्रीराधिकायाः कृपाकटाक्षस्तोत्रं सम्पूर्णम।
राधा कृपा कटाक्ष स्तोत्र अर्थ-
1.हे ऋषि महाराजों द्वारा पूजी जाने वाली देवी, हे तीनों लोकों के कष्टों को दूर करने वाली, तुम्हारा खिले हुए कमल के भाँती मुख है, तुम वन में लीलाओं में आनंद लेती हो, हे वृषभानु की बेटी, व्रज के राजकुमार की संगिनी, कब तुम मुझ पर अपनी कृपा कटाक्ष डालोगी?
2. हे अशोक के पेड़ के पास एक बेलों की बनी कुटीर में रहने वाली देवी! तुम्हारे नाजुक पैर लाल फूलों के समान कोमल हैं और तुम्हारे हाथ निर्भयता का वर देते हैं, तुम दिव्य ऐश्वर्य का निवास हो, कब तुम मुझ पर अपनी कृपा कटाक्ष डालोगी?
3. हे देवी! आपकी शुभ, कामुक भौहों के घुमावदार धनुषों से जो आपकी नज़र के तीर के तटर निकलते हैं, उन तीरों ने नंद के पुत्र [कृष्ण] को पूरी तरह से वश में कर लिया है, कब तुम मुझ पर अपनी कृपा कटाक्ष डालोगी?
4. हे देवी आपका रूप चंपक के फूल, सोना और विद्युत के समान शानदार है, आपके चेहरे पर लाखों शरद ऋतु के चंद्रमा की सी दमक है, हे बेचैन युवा चकोर पक्षी के सामान अद्भुत आँखों वाली देवी! कब तुम मुझ पर अपनी कृपा कटाक्ष डालोगी?
5. अपने उत्साह में ही उन्मादित (मस्त) रहने वाली देवी! तुम सदा ही प्रसन्नचित्त और गर्वित रहती हो, हे देवी तुम सदा अपने प्रिय कृष्ण के प्रेम में मग्न रहती हो, तुम चंचल कलाओं की अधिष्ठात्री हो, वृंदावन के अद्वितीय भव्य वन ग्रोवों के राज्य में मनोरंजक लीलाओं का आनंद लेने वाली देवी! कब तुम मुझ पर अपनी कृपा कटाक्ष डालोगी?
6. हे निर्भीक भावों के मोतियों के हार से सजी हुई देवी, तुम स्वर्ण के सामान गोरी हो देवी जिनके वक्ष बड़े सुनहरे कुम्भों (मटकों) के समान हैं, हे देवी! तुम कोमल मुस्कान के सुगंधित चूर्ण से भरे सुख के सागर के समान हो, कब तुम मुझ पर अपनी कृपा कटाक्ष (दृष्टि) डालोगी?
7. हे देवी! तुम्हारी भुजाएं लहरों में झूमते कमल के डंठल के समान है, तुम्हारे नीले नेत्र नाचती हुई लताओं के समान हैं, तुम चंचल, सुन्दर और मुग्ध कर देने वाली हो, हे देवी! कब तुम मुझ पर अपनी कृपा कटाक्ष (दृष्टि) डालोगी?
8. हे देवी! तुम अपने गले के तीन-पंक्ति वाले शंख पर सोने का हार पहनती हो, तुम तीन चमेली की माला और तीन रत्नों के हार धारण करती हो, हे देवी तुम्हारे काले बालों की चंचल लटें फूलों के गुच्छों से सजाए हुए हैं, हे देवी! कब तुम मुझ पर अपनी कृपा कटाक्ष (दृष्टि) डालोगी?
9. हे देवी, तुम अपने घुमावदार कूल्हों पर फूलों से सजी कमरबंद पहनती हो, तुम झिलमिलाती हुई घंटियों वाली कमरबंद के साथ मोहक लगती हो, तुम्हारी सुंदर जांघें राजसी हाथी की सूंड को भी लज्जित करती हैं, हे देवी! कब तुम मुझ पर अपनी कृपा कटाक्ष (दृष्टि) डालोगी?
10. हे देवी! तुम्हारी पायल की झनझनाहट अनेक मन्त्रों के स्वरों और अनेक राजसी हंसों की कूजन से भी अधिक सुन्दर होती है, हे देवी तुम्हारी मनोहर गति चलती सुनहरी लताओं का उपहास करती है, कब तुम मुझ पर अपनी कृपा कटाक्ष (दृष्टि) डालोगी?
11. हे देवी, तुम्हें ब्रह्मा द्वारा पूजा जाता है, हे तुम्हारे लिए लाखों वैष्णव झुकते हैं, तुम पार्वती, शशि और सरस्वती को आशीर्वाद देती हैं, हे देवी! तुम्हारे पैर के नाखून असीम ऐश्वर्य और रहस्यवादी सिद्धियों से अभिषेक करते हैं, कब तुम मुझ पर अपनी कृपा कटाक्ष (दृष्टि) डालोगी?
12. हे वैदिक यज्ञों की देवी, हे पवित्र कार्यों की देवी, हे भौतिक जगत की देवी, हे देवताओं की ईश्वरी, हे वैदिक विद्या की रानी, हे ज्ञान की रानी, हे भाग्य की देवी, हे धैर्य की देवी, हे वृंदावन की देवी, सुख के वन की देवी, हे व्रज की रानी, हे व्रज की महारानी, हे श्री राधिका, आपको नमन!
13. एक भक्त द्वारा की जा रही मेरी इस प्रार्थना को सुनकर, श्री वृषभानु-नंदिनी उसे लगातार अपनी दयालु दृष्टि का विषय बनायें। उस समय उसकी सभी कर्म प्रतिक्रियाएँ - चाहे वह परिपक्व हो, फलदायी हो, या बीज में पड़ी हो - पूरी तरह से नष्ट हो जाएँ, और फिर वह नंदनंदन के शाश्वत प्रेमपूर्ण सभा में प्रवेश प्राप्त करे।
14. यदि कोई साधक पूर्णिमा, शुक्ल पक्ष की अष्टमी, दशमी, एकादशी और त्रयोदशी के रूप में जाने जाने वाले चंद्र दिवसों पर स्थिर मन से इस स्तवन का पाठ करे तो...।
15. जो-जो साधक की मनोकामना हो वह पूर्ण हो। और श्री राधा की दयालु पार्श्व दृष्टि से वे भक्ति सेवा प्राप्त करें जिसमें भगवान के शुद्ध, परमानंद प्रेम (प्रेम) के विशेष गुण हैं।
16. जो साधक श्री राधा-कुंड के जल में खड़े होकर (अपनी जाँघों, नाभि, छाती या गर्दन तक) इस स्तम्भ (स्तोत्र) का १०० बार पाठ करे...।
17. वह जीवन के पाँच लक्ष्यों धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और प्रेम में पूर्णता प्राप्त करे, उसे सिद्धि प्राप्त हो। उसकी वाणी सामर्थ्यवान हो (उसके मुख से कही बातें व्यर्थ न जाए) उसे श्री राधिका को अपने सम्मुख देखने का ऐश्वर्य प्राप्त हो और...।
18. और श्री राधिका उस पर प्रसन्न होकर उसे महान वर प्रदान करें कि वह स्वयं अपने नेत्रों से उनके प्रिय श्यामसुंदर को देखने का सौभाग्य प्राप्त करे।
19. और वृंदावन के अधिपति (स्वामी), उस भक्त को अपनी शाश्वत लीलाओं में प्रवेश दें। वैष्णव जन इससे आगे किसी चीज की लालसा नहीं रखते।
इस प्रकार श्री उर्ध्वाम्नाय तंत्र का श्री राधिका कृपा कटाक्ष स्तोत्र पूरा हुआ।
Great efforts.
ReplyDeleteGreat efforts.
ReplyDeletejai jai shree radhey
ReplyDeleteNirantram vashikrutum pritit nand nandane 🙏🎊🎊
ReplyDeleteThank you for this❤️
ReplyDeleteHii
DeleteHello,
DeleteIf you have any queries or suggestion, you can write them here.
Jai jai shree radhey 🙏🙏🙏🌷🌷⚘
ReplyDeleteJai jai shree radhey 🙏🌷🙏
ReplyDelete।। राधाकृष्णाय शरणं मम्।।
ReplyDeleteJai Jai Shree RadhayKrishna
ReplyDeleteJai Shri Radhe🙏🏻🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteJay Shri Radha Gopal
ReplyDeleteJai radha shyamsundar ki 🙇🏻♂️🙇🏻♂️🙇🏻♂️
ReplyDeleteRadha Radha Radha Radha Radha
ReplyDeleteJai Jai Shree Radhe 🙏 🌹 🌹⚘️🥀❤️🙏
ReplyDeleteराधे राधे 🙏🙏 बहुत ही सुन्दर और सरल ढंग से वर्णन किया गया है।
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