अष्टक संस्कृत में आठ छंदों या श्लोकों की एक काव्य रचना है। यह भारतीय संस्कृति के इतिहास में पाए जाने वाले दर्जनों अष्टकों से स्पष्ट होता है।
ऐसा ही एक अष्टक जो पूरे भारत के मंदिरों से निकलता है, वह है शिव लिंगाष्टकम। लाखों लोग नित्य प्रतिदिन इस अष्टक के पाठ से भगवान शिव की स्तुति करते हैं।
यह अष्टक आद्य शंकराचार्य द्वारा लिख गया है जोकि स्वयं शिव के अवतार माने जाते हैं।
संस्कृत में लिंग का संस्कृत अर्थ है- प्रतीक, अर्थात शिवलिंग शिव और शक्ति से संसार के उद्भव का प्रतीक है। यहाँ लिंगाष्टक हिंदी अर्थ सहित दिया गया है।
Lingashtakam Lyrics with Meaning in Hindi
अथ श्रीलिंगाष्टकम्
ब्रह्ममुरारि सुरार्चितलिङ्गं निर्मलभाषित शोभितलिङ्गम् ।
जन्मज दुःख विनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।1।
[मैं शिवलिंग को प्रणाम करता हूँ] जो ब्रह्मा, विष्णु और देवताओं द्वारा पूजित है, जो निर्मल, उज्जवल और शोभित (सुहावना) है। जो जन्म जन्मों के पापों का नाश करता है, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।
देवमुनि प्रवरार्चित लिङ्गं कामदहं करुणाकर लिङ्गम् ।
रावण दर्पविनाशन लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।2।
जो देवों और मुनिवरों द्वारा पूजा जाता है, जो सभी काम-इच्छा आदि का नाश करता है और करुणावान है। जिसने रावण के अहंकार का नाश किया था, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।
सर्व सुगन्धि सुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धन कारणलिङ्गम् ।
सिद्ध सुरासुर वन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।3।
सभी प्रकार की सुगंधों से जिसका लेपन होता है, जो (आध्यात्मिक) बुद्धि और विवेक के उत्थान का कारण है। सिद्धों, देवता, असुरों सभी के द्वारा जिसकी वंदना की जाती है, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।
कनकमहामणि भूषितलिङ्गं फणिपति वेष्टितशोभित लिङ्गम् ।
दक्ष सुयज्ञ विनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।4।
स्वर्ण और मणियों द्वारा जिसका श्रृंगार होता है, लिपटे सर्पों से जिसकी शोभा बढ़ जाती है। जिसने दक्ष के महायज्ञ का विनाश किया था, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।
कुङ्कुम चन्दन लेपितलिङ्गं पङ्कजहार सुशोभितलिङ्गम् ।
सञ्चित पापविनाशन लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।5।
जिस पर कुंकुम और चन्दन का लेपन होता है, जो कमलों के हार से सुशोभित होता है, जो सभी जन्मों के पापों का नाश करता है, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।
देवगणार्चित सेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकर कोटिप्रभाकर लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।6।
देवगणों के द्वारा भक्ति और सच्चे भाव से जिसकी सेवा होती है, जिसका वैभव और तेज करोड़ों सूर्यों के समान है, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।
अष्टदलो परिवेष्टित लिङ्गं सर्व समुद्भवकारण लिङ्गम् ।
अष्टदरिद्र विनाशित लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्।7।
आठ पंखुड़ियों वाले फूलों से घिरा हुआ है, सम्पूर्ण सृष्टि की रचना जिससे आरम्भ हुई थी, जो आठ प्रकार के दारिद्र्य को दूर करने वाला है, मैं उस सदाशिवलिंग को प्रणाम करता हूँ।
सुरगुरुसुरवर पूजित लिङ्गं सुरवनपुष्प सदार्चित लिङ्गम्।
परात्परं परमात्मक लिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ।8।
जो देवताओं के गुरु ( बृहस्पति ) द्वारा पूजित है, स्वर्ग के वन के फूलों द्वारा जिसकी पूजा-अर्चना होती है, जो श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठ है और जो महानतम है, मैं उस शाश्वत शिवलिंग को प्रणाम करता हूं।
फलश्रुतिः-
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।
जो भी लिंगाष्टक को शिव के समीप बैठकर पढता है, वह अंत में शिवलोक को प्राप्त होकर शिव के साथ सुखी रहता है।
इस प्रकार लिंगाष्टकम पूरा हुआ।
लिंगाष्टक का महत्त्व-
शिव पूजा करते समय लिंगाष्टक का पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है, श्रावण मास के समय लिंगाष्टक का पाठ करने से मन की असीम शान्ति प्राप्त होती है।
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