Devi Durga |
यह स्तोत्र मार्कण्डेय पुराण के देवी माहात्म्य से लिया गया है तथा इस लेख के कुछ भाग गीताप्रेस (गोरखपुर) की पुस्तक देवी दुर्गा सप्तशती (Learn More) से प्रेरित हैं, इस पुस्तक को अमेजोन से खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें - दुर्गा सप्तशती (मात्र 59 रूपए)
। अथ दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला ।
दुर्गा दुर्गतिशमनी दुर्गापद्विनिवारिणी।
दुर्गमच्छेदिनी दुर्गसाधिनी दुर्गनाशिनी।
दुर्गतोद्धारिणी दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा।
दुर्गमज्ञानदा, दुर्गदैत्यलोकदवानला ।।
दुर्गमा दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी।
दुर्गमार्गप्रदा दुर्गमविद्या दुर्गमाश्रिता ।।
दुर्गमज्ञानसंस्थाना दुर्गमध्यानभासिनी।
दुर्गमोहा दुर्गमगा दुर्गामार्थस्वरूपिणी।।
दुर्गमासुरसन्हंत्री दुर्गमायुधधारिणी।
दुर्गमाङ्गी दुर्गमता दुर्गम्या दुर्गमेश्वरी।।
दुर्गभीमा दुर्गभामा दुर्गभा दुर्गदारिणी।।
नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानवः।
पठेत् सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति न संशयः।।
हिंदी अर्थ-
एक समय कि बात है, ब्रम्हा आदि देवताओं ने पुष्प आदि विविध उपचारों से महेश्वरी
दुर्गा का पूजन किया। इससे प्रसन्न होकर दुर्गतिनाशिनी कहा- 'देवताओं ! मैं पूजन
से संतुष्ट हूँ, तुम्हारी जो इच्छा हो, माँगो, मैं तुम्हें दुर्लभ से दुर्लभ
वस्तु भी प्रदान करुँगी।'
दुर्गा का यह वचन सुनकर देवता बोले - 'देवी ! हमारे शत्रु महिषासुर को,जो
तीनों लोकों के लिए कंटक था, आपने मार डाला, इससे सम्पूर्ण जगत स्वस्थ एवं
निर्भय हो गया। आपकी ही कृपा से हमें पुनः अपने अपने पद की प्राप्ति हुई।
आप भक्तों के लिए कल्पवृक्ष हैं, हम आपकी शरण में आये हैं। अतः अब हमारे मन
में कुछ भी अभिलाषा शेष नहीं है। हमे सब कुछ मिल गया; तथापि
आपकी आज्ञा है, इसलिए हम जगत की रक्षा के लिए आपसे कुछ पूछना चाहते
हैं।
महेश्वरि!कौन सा ऐसा उपाय है, जिससे शीघ्र प्रसन्न होकर आप संकट में पड़े हुए
जीव की रक्षा करती है। देवेश्वरि! यह बात सर्वथा गोपनीय हो गोपनीय हो
तो भी हमें अवश्य बतावें।'
देवताओं के इस प्रकार प्रार्थना करने पर दयामयी दुर्गादेवी ने कहा- 'देवगण! सुनो-
यह रहस्य अत्यंत गोपनीय और दुर्लभ है । मेरे बत्तीस नामों कि माला सब प्रकार की
आपत्ति का विनाश करने वाली है । तीनों लोकों में इसके सामान दूसरी कोई स्तुति
नहीं है।
यह रहस्यरूप है। इसे बतलाती हूँ, सुनो-
१- दुर्गा, २- दुर्गातिशमिनी, ३- दुर्गापद्विनिवारिणी, ४- दुर्गमच्छेदिनी, ५-
दुर्गसाधिनी, ६- दुर्गनाशिनी, ७- दुर्गतोद्धारिणी, ८- दुर्गनिहंत्री, ९-
दुर्गमापहा, १०- दुर्गमज्ञानदा, ११- दुर्गदैत्यलोकद्वानला, १२- दुर्गमा, १३-
दुर्गमालोका, १४- दुर्गमात्मस्वरूपिणी, १५- दुर्गमार्गप्रदा, १६- दुर्गमविद्या,
१७- दुर्गमाश्रिता, १८- दुर्गमज्ञानसंस्थाना, १९- दुर्गमध्यानभासिनी, २०-
दुर्गमोहा, २१- दुर्गमगा, २२-दुर्गामार्थस्वरूपिणी, २३- दुर्गमासुरसन्हंत्री, २४-
दुर्गमायुधधारिणी, २५- दुर्गमाङ्गी, २६- दुर्गमता, २७- दुर्गम्या, २८-
दुर्गमेश्वरी, २९- दुर्गभीमा, ३०- दुर्गभामा, ३१- दुर्गभा, ३२-
दुर्गदारिणी।
जो मनुष्य मुझ दुर्गा कि इस नाममाला का पाठ करता है, वह निसंदेह सब प्रकार के भय
से मुक्त हो जायेगा। '
कोई शत्रुओं से पीड़ित हो अथवा दुर्भेद्य बंधन में पड़ा हो, इन बतीस नामों के पाठ
मात्र से संकट से छुटकारा पा जाता है। इसमें तनिक भी संदेह के लिए स्थान नहीं
हैं।
यदि राजा क्रोध में भरकर वध के लिए अथवा और किसी कठोर दंड के लिए
आज्ञा युद्ध में शत्रुओं द्वारा मनुष्य घिर जाये अथवा वन में व्याघ्र
आदि हिंसक जंतुओं के चंगुल में फँस जाये, तो इन बतीस नामों का एक सौ आठ बार पाठ
मात्र करने से वह संपूर्ण भयों से मुक्त हो जाता है।
विपत्ति के समय इसके सामान भय नाशक उपाय दूसरा नहीं है। देवगण! इस नाममाला का पाठ
करने वाले मनुष्यों को कभी कोई हनी नही होती। अभक्त, नास्तिक और शठ मनुष्य को
इसका उपदेश नहीं देना चाहिए। जो भारी विपत्ति में पड़ने पर भी इस नामावली का हज़ार,
दस हज़ार अथवा लाख बार पाठ स्वयं करता या ब्राम्हणों से करता है, वह सब प्रकार कि
आपतियों से मुक्त हो जाता है।
सिद्ध अग्नि में मधुमिश्रित सफ़ेद तिलों से इन नामों द्वारा लाख बार हवन तो मनुष्य
सब विपत्तियों से छूट जाता है। इस नाममाला का पुरश्चरण तीस हज़ार का है।
पुरश्चरणपूर्वक पाठ करने से मनुष्य इसके द्वारा संपूर्ण कार्य सिद्ध कर सकता है।
मेरी सुन्दर मिटटी कि अष्टभुजा मूर्ति बनावे, आठों भुजाओं में क्रमशः गदा, खडग,
त्रिशूल, बाण, धनुष,कमल, खेट(ढाल) और मुद्गर धारण करावे।
मूर्ति के मस्तक में चन्द्रमा का चिन्ह हो, उसके तीन नेत्र हो, उसे लाल वस्त्र
पहनाया गया हो, वह सिंह के कंधे पर सवार हो और शूल से महिषाशुर का वध कर रही हो,
इस प्रकार कि प्रतिमा बनाकर नाना प्रकार कि सामग्रियों से भक्तिपूर्वक मेरा पूजन
करे।
मेरे उक्त नामों से लाल कनेर के फूल चढाते हुए सौ बार पूजा करे और मंत्र जप
करते हुए पुए से हवन करे। भांति-भांति के उत्तम पदार्थ भोग लगावे। इस प्रकार करने
से मनुष्य असाध्य कार्य को भी सिद्ध कर लेता है। जो मानव प्रतिदिन मेरा भजन करता
है, वह कभी विपत्ति में नहीं पड़ता। '
देवताओं से ऐसा कहकर जगदम्बा वहीं अंतर्ध्यान हो गयीं। दुर्गा जी के इस उपाख्यान को
जो सुनते है, उन पर कोई विपत्ति नहीं आती। समाप्त...
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Thank you.
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